Saturday 6 October 2012

स्व -यात्रा

आज भी सुबह 6 बजे उठा , जो हिस्से जिन्दगी से कट जाते है,उन्हें जेहन में रखना सचमुच कितना कष्टप्रद होता है, ये वही जान  सकता है, जो इस असह्य पीड़ा से दो चार करता है।

कैद ख्वाब

हाँ, गलती मेरी थी की एक ख्वाब सजाया मैंने
वो भी बिना तुमसे पूछे
इतनी आदत है तुम्हारी
की अब की सोच भी तुमसे पूछती है
क्या इस वक़्त आना सही होगा?
हंसी रूककर झांकती है पहले
कहीं मेरे आने से तू नाराज़ तो नही होगा?
मेरे ख्वाबों को तेरे हाथों का सहारा मिला नहीं
पर मुट्ठियों में तेरी क़ैद हैं वो ज़रूर
और कह देता है अक्सर तू
की उँगलियों में मेरी इतनी जान है नहीं
की आज़ाद हो पाएं मेरे ख्वाब तुझसे
जानना ज़रूरी नही तेरे लिए की मेरी ख़ुशी है कहाँ
पर मेरी भलाई करने का बोझा सर पे अपने ढोता है तू
बड़ा लाजवाब है प्यार तेरा
की तू मेरा नहीं, बस सिर्फ मैं हूँ तेरा
तेरे ग़म की वजह जानने तक का हक मेरा नहीं
और तेरे ही ज़ुल्म पर तुझसे पूछकर बहा सकती हूँ मैं आंसू
अब अगर मौत को गले लगाओं,
तो पूछता है तू कहाँ गई मेरी जिंदादिली
और तुझे गले लगाने तक का हक़ मेरा नहीं
इस अधूरी आस पर हूँ जी रही की बदलेगा तू
फिर लौटेगी गुलाबों की वो खुशबू
पर प्यार की वो सौगात से अब वाकिफ तक नहीं तू
और आज चल रही हूँ तुझसे मैं दूर.